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Mysterious temple - Kailas temple

                                                     Mysterious temple - Kailas temple

Time capsule in hindi

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Time capsule Time capsule एक जंगरोधी लोहे,स्टील व कापर का बस्तरबंद वैक्यूम कण्टैनर होता है। जो 5000 साल तक सुरक्षित रह सकता है। जिसमें किसी भी महत्वपूर्ण वस्तु/धर्म/सम्प्रदाय/ इमारत के इतिहास को साक्ष्य सहित बंद कर एक लम्बे समय तक के लिये जमीन के बहुत अन्दर दफन किया जाता है। Time capsule का उद्देश्य होता है कि भविष्य में यदि किसी द्वारा उस Time capsule को प्राप्त किया जाता है  तो उन्हे उस धर्म/सम्प्रदाय/ इमारत के इतिहास के सम्बन्ध पूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके। आपको  पता होना चाहिये कि,  15 अगस्त 1973 को तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व0श्रीमती इन्द्रा गांधी द्वारा लालकिले के पास एक Time capsule दफनाया था परन्तु उस Time capsule में क्या जानकारी थी कभी भी सार्वजनिक नही की गयी थी। पर कुछ सूत्रों द्वारा पता लगा था कि उस Time capsule में आजादी के बाद 25 सालों की घटनाक्रम को साक्ष्यों के साथ दफन किया गया था। जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी द्वारा 05 अगस्त वर्ष 2020 को अयोध्या मंदिर परिषर में एक Time capsule, 2000 फिट जमीन के नीचे दफन किया जाएगा। जिसम...

शिव लिंग के बारे में एक रोचक तथ्य

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•*• भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप उठा लें, हैरान हो जायेंगे ! भारत सरकार के न्युक्लियर रिएक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगों के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। •*• शिवलिंग और कुछ नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो हैं, तभी तो उन पर जल चढ़ाया जाता है, ताकि वो शांत रहें। •*• महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्व पत्र, आकमद, धतूरा, गुड़हल आदि सभी न्युक्लिअर एनर्जी सोखने वाले हैं। •*•क्यूंकि शिवलिंग पर चढ़ा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसीलिए तो जल निकासी नलिका को लांघा नहीं जाता। •*• भाभा एटॉमिक रिएक्टर का डिज़ाइन भी शिवलिंग की तरह ही है। •*• शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल नदी के बहते हुए जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है। •*• तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि महादेव शिवशंकर अगर नाराज हो जाएंगे तो प्रलय आ जाएगी। •*• ध्यान दें कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है। •*• जिस संस्कृति की कोख से हमने जन्म लिया है, वो तो चिर सनातन है। विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।.. •*• आप...

Kukadi pratha

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          कुकरी प्रथा क्या है। शायद आज के समय में युवा वर्ग के लोगों को इस शब्द के बारे में जानकारी नही होगी। पर भारत वर्ष के एक राज्य राजस्थान में आज के समय भी ये प्रथा एक अभिशाप के रूप में पनप रही है। वर्ष 2014 में विजय एन शंकर की एक किताब आई थी   शैडो बॉक्सिंग विद द गॉड्स   किताब में हमारे समाज की ऐसी बहुत सारी बुराइयों का ज़िक्र है. जो आज भी चली आ रही हैं. उसमें इस कुकरी प्रथा व इसके तरीकों का भी ज़िक्र है. एक लड़की शादी करके अपने ससुराल आती है. सुहागरात पर उसका पति कमरे में आता है , पति के हाथों में सफ़ेद धागे का एक गुच्छा है. देखकर लड़की घबरा जाती है. वो जानती है कि क्या होने वाला है. क्योंकि ऐसा वो अपने घर की औरतों से हमेशा से सुनती आई है. पति ये चेक करने वाला है कि उसकी बीवी वर्जिन है या नहीं. लड़की रोती रहती है. थोड़ी देर बाद उसका पति वो धागा लेकर बाहर जाता है. चीख-चीखकर सबको बताता है , ‘ अरे , वो ख़राब है. लड़के के घर वाले अब उस नई दुल्हन से उसके पुराने बॉयफ्रेंड का नाम पूछते हैं. लड़की रो-रोकर कहती रह जाती है कि उसने कभी ऐसा कुछ नहीं किया ह...

Begunkodor railway station

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वो रेलवे स्टेशन जहां आत्माओं का है वास , रात में नहीं रुकती कोई भी ट्रेन भारत देश में रेलवे स्टेशनों की शुरुआत को लगभग 200 साल हो चुके है। आज भारत की बड़ी आबादी दूर-दराज के सफर के लिए आज भी रेल सुविधा पर भी भरोसा करती है. ऐसे में किसी ट्रेन स्टेशन का हॉन्टेड यानी भुतहा कहलाना हैरानी की ही बात है. हालांकि बेगुनकोडोर ( Begunkodor) कोलकाता , ऐसा एक रेलवे स्टेशन है जिसे लगभग 42 साल तक “ ghost station ” माना जाता है. यहां लगातार अजीबोगरीब हादसे हुए , जिनके पीछे रहस्यमयी ताकतों का हाथ बताया जाता है। यह सुनने में बड़ा अजीब सा लगता है और वो भी तब जब स्टेशन को खुले अभी महज सात साल ही हुए हों। आपको शायद यह मजाक लग रहा होगा , लेकिन यह बिल्कुल सच है। यह रेलवे स्टेशन पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में है , जिसका नाम है बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन। यह रेलवे स्टेशन साल 1960 में खुला था। इसे खुलवाने में संथाल की रानी श्रीमति लाचन कुमारी का अहम योगदान रहा है। यह स्टेशन खुलने के बाद कुछ सालों तक तो सबकुछ ठीक रहा , लेकिन बाद में यहां अजीबोगरीब घटनाएं घटने लगीं। साल 1967 में बेगुनकोडोर के एक रेलवे कर्मचा...